हरि अनंत हरिकथा अनंता...(२७)


गोस्वामी तुलसीदास ने राम कथा को अलौकिक इसीलिए बताया कि यह कथा वेद-पुराणों के समुद्र अर्थात् ज्ञान से जो बादल बने और उनसे जो पानी बरसा, उसके समान हितकारी, जान देने वाली और मोक्ष प्रदान करने वाली है। इस कथा का प्रारम्भ अयोध्या में रामनवमी के दिन हुआ। अयोध्या नगरी के बारे में कहा गया है कि 
सब विधि पुरी मनोहर जानी, सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी।
बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा, सुनत नसाहिं काममद दंभा।
यह नगरी सब प्रकार से मनोरथ व सभी सिद्धियों को देने वाली और कल्याण की खान समझकर मैंने इस कथा का आरम्भ किया, जिसके सुनने से काम, मद और दम्भ नष्ट हो जाते हैं।
रामचरित मानस एहिं नामा, सुनत श्रवन पाइउ विश्रामा।
मनकरि विषय अनल बन जरई, होई सुखी जौं यहिं सर परई।
रामचरित मानस मुनि भावन, विरचेउ संभु सुहावन पावन।
त्रिविध दोष दुख दारिद दावन, कलि कुचालि कलि कलुष नसावन।
रचि महेस निज मानस राखा, पाइ सुसमउ सिवासन भाषा।
तातें रामचरित मानस बर, धरेउ नाम हियं हेरि हरषि हर।
कहउं कथा सोइ सुखद सुहाई, सादर सुनहु सुजन मन लाई।
इस कथा का नाम रामचरित मानस है, जिसके सुनते ही शांति मिलती है। इस संसार में मन रूपी हाथी विषय वासना रूपी दावानल (जंगल में लगने वाली आग) में जल रहा है, वह यदि इस रामचरित रूपी सरोवर (तालाब) में आ पड़े तो सुखी हो जाए। यह रामचरित मानस मुनियों का प्रिय है। इस सुहावने और पवित्र मानस की शिव जी ने रचना की। यह तीनों प्रकार के दुखों (दैहिक, दैविक  और भौतिक) और तीनों प्रकार के दोषों (मन, वचन एवं कर्म) व दरिद्रता तथा कलियुग की कुचालों (साजिशों) और सभी पापों का नाश करने वाला है। श्री महादेव जी ने इसको रचकर अपने मन में रखा था और सुअवसर पाकर पार्वती जी से कहा। इसी से शिवजी ने इसको अपने हृदय में रखकर और प्रसन्न होकर इसका सुन्दर 'रामचरित मानसÓ नाम रखा। मैं उसी सुख देने वाली सुहावनी रामकथा को कहता हूं। हे सज्जनों! आदर पूर्वक, मन लगाकर इस कथा को सुनिए।
जस मानस जेहि विधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु।
अब सोइ कहउं प्रसंग सब, सुमिरि उमा वृष केतु।
यह रामचरित मानस जैसा है, जिस प्रकार बना है और जिस कारण जगत में इसका प्रसार हुआ, अब वही सब कथा मैं श्री उमा-महेश्वर का स्मरण करके कहता हूं।
संभु प्रसाद सुमति हियं हुलसी, रामचरित मानस कवि तुलसी।
करइ मनोहर मति अनुहारी, सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी।
सुमति भूमि थल हृदय अगाधू, वेद पुरान उदधि धन साधू।
बरषहिं राम सुजस बर बारी,  मधुर मनोहर मंगलकारी।
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं भगवान शंकर की कृपा से ही हृदय में सुन्दर बुद्धि का विकास हुआ जिससे यह तुलसीदास रामचरित मानस का कवि हो सका। अपनी बुद्धि के अनुसार तो कवि (तुलसीदास) ने इसे मनोहर ही बनाया है लेकिन फिर भी हे सज्जनों! सुन्दर चित से सुनकर इसे आप सुधार लीजिए। वह कहते हैं कि सुन्दर (सात्विक) बुद्धि ही भूमि है, हृदय ही उसमें गहरा स्थान है, वेद-पुराण समुद्र हैं और साधु-संत मेघ (बादल) है। वे साधु रूपी मेघ श्री राम जी के सुयश रूपी सुंदर मधुर, मनोहर और मंगलकारी जल की वर्षा करते हैं।
लीला सगुन जो कहहिं बखानी, सोइ स्वच्छता करई मलहानी।
प्रेम भगति जो बरनि न जाई, सोइ मधुरता सुसीतल ताई।
सोजल सुकृत सालि हित होई, राम भगत जन जीवन सोई।
मेघा महि गत सो जल पावन, सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन।
भरेउ सुमानस सुथल थिराना, सुखद सीत रुचि चारु चिराना।
तुलसीदास जी कहते हैं कि सगुण लीला का जो विस्तार से वर्णन करते हैं वही राम-सुयश रूपी जल की निर्मलता है, जो मल (गंदगी) का नाश करती है और जिस प्रेम-भक्ति का वर्णन नहीं किया जा सकता, वही इस जल की मधुरता और सुन्दर शीतलता है। वह राम सुयश रूपी जल सत्कर्म रूपी धान (सालि) के लिए हितकर है और श्री राम जी के भक्तों का तो जीवन ही है। वही पवित्र जल बुद्धि रूपी पृथ्वी पर गिरा और सिमट कर सुहावने कान रूपी मार्ग से चला और मानस (हृदय रूपी श्रेष्ठ स्थान में भर कर वहीं स्थिर (सरोवर) हो गया। वही जल थिराकर अर्थात् जब उसकी गंदगी नीचे बैठ गयी तो सुन्दर, रुचिकर, शीतल और सुखदायी हो गया। 
सुठि, सुन्दर संवाद बर, विरचे बुद्धि विचारि।
तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि।
इस कथा में बुद्धि से विचार कर जो चार अत्यन्त सुन्दर और उत्तम संवाद हैं। इनमें एक भगवान शिव का पार्वती के साथ, दूसरा भुशुण्डि का गरुण के साथ, तीसरा याज्ञवल्क्य का भारद्वाज के साथ और चौथा गोस्वामी तुलसीदास का संतों के साथ है, वही चार घाट इस पवित्र और मनोहर सरोवर के हैं।
सप्त प्रबंध सुभग सोपाना, ग्यान नयन निरखत मनमाना।
रघुपति महिमा अगुन अबाधा, बरनब सोइ बर बारि अगाधा।
राम सीय जस सलिल सुधासम, उपमा बीचि विलास मनोरम।
पुरइनि सघन चारू चौपाई, जुगुति मंजु मनि सीप सुहाई।
इस कथा में सात काण्ड हैं जो इस मानस सरोवर की सुन्दर सीढिय़ां हैं जिनको ज्ञान रूपी नेत्रों से देखते ही मन प्रसन्न हो जाता है। श्री रघुनाथ जी की निर्गुण (प्राकृतिक गुणों से अतीत) और निर्बाध (एक रस) महिमा का जो वर्णन किया जाएगा, वही इस सुन्दर जल की अथाह गहराई है। श्री राम और सीता जी का यश अमृत के समान जल है। इसमें जो उपमाएं दी गयी हैं, वही तरंगों का मनोहर बिलास है। सुन्दर चौपाइयां ही इसमें घनी फैली हुई पुरइन (कमल की पत्तियां) हैं और कविता की युक्तियां सुन्दर मणि (मोती) उत्पन्न करने वाली सुहावनी सीपियां है
छंद सोरठा सुन्दर दोहा, सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा।
अरथ अनूप सुभाव सुभासा, सोइ पराग मकरंद सुबासा।
सुकृत पुंज मंजुल अति माला, ग्यान बिराग विचार मराला।
धुनि अवरेब कवित गुनजाती, मीन मनोहर ते बहुत भांती।
इस कथा में जो सुन्दर छन्द, सोरठे और दोहे हैं, वहीं इसमें बहुरंगे कमलों के समूह समान सुशोभित हैं। अनुपम अर्थ, ऊंचे भाव और सुन्दर भाषा ही पराग (पुष्प रज), मकरंद (पुष्प रज) और सुगंध हैं सत्कर्मों (पुण्यों) के पुंज (समूह) भौंरों की सुन्दर पंक्तियां है और इस कथा रूपी सरोवर के ज्ञान, वैराग्य रूपी विचार ही हंस हैं। कविता की ध्वनि, वक्रोक्ति, गुण और जाति ही अनेक प्रकार की मछलियां हैं। इस प्रकार गोस्वामी जी ने रामचरित मानस रूपी सरोवर का बहुत ही अच्छी उपमाओं के साथ वर्णन किया है। इससे ही मालूम होता है कि यह कथा कितनी गंभीर है। (शांतिप्रिय-हिफी)